संवैधानिक नैतिकता: अर्थ, स्रोत और व्याख्या

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संवैधानिक नैतिकता का तात्पर्य संविधान के मूल सिद्धांतों का अनुसरण करना है। इसके अंतर्गत एक ऐसी समावेशी, लोकतांत्रिक और राजनीतिक प्रक्रिया का समर्थन किया जाता है जो व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों हितों को पूर्ण करती हों।

भारतीय संविधान के विषय में, यह जिन मूल्यों का समर्थन करते है उनमें लोकतंत्र, समाजवाद, समानता और अखंडता आदि शामिल हैं।

संवैधानिक नैतिकता का अर्थ:

• इसका अर्थ,उन नियमों का अनुसरण करना हैं जो नागरिकों की स्वतंत्रता का उल्लंघन करने वाली सरकार की शक्तियों को सीमित करते हैं।

• यह नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा करने की प्रतिबद्धता पर जोर देते है।

• इसमें संविधान की सर्वोच्चता और कानून के शासन का सम्मान करना भी शामिल है।

• इस सिद्धांत के मानक संविधान के मानदंडों के अनुरूप हैं। इसके अंतर्गत कानून के शासन का उल्लंघन करने वाले या मनमाने तरीके से कार्य करने वाले नियमों से बचना आवश्यक है।

• संविधान के प्रति प्रतिबद्ध होना, इसका एक पहलू है। मध्य भारत के संघर्षग्रस्त वनों में चुनाव ड्यूटी पर तैनात एक सरकारी क्लर्क सुरक्षा बलों की उदासीनता और कम्युनिस्ट विद्रोहियों के गुरिल्ला हमलों के बढ़ते डर के बावजूद स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान कराने की पूरी कोशिश करता है।

• यह संविधानवाद में लिखे गए मूल सिद्धांतों के अनुसरण करने से भी कई कदम आगे जाता है।

• इसकी व्यापक विशेषताएं हैं, जैसे अन्य संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करते हुए एक विविध और समावेशी समाज को बढ़ावा देना।

• संवैधानिक नैतिकता को मूर्त रूप देने के लिए संवैधानिकता के मूल्य प्रत्येक नागरिक के उत्थान के लिए राज्य के शासन में व्याप्त होते हैं।

• इसके द्वारा समाज से व्याप्त असमानता को समाप्त किया जा सकता है और संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों को लागू करने के साधनों की गारंटी दी जाती है।

• इसका मुख्य लक्ष्य देश की विविध जनसंख्या के बीच भाईचारे को बढ़ावा देकर भारतीय लोकतंत्र को जीवंत बनाना है।

भारत की संवैधानिक नैतिकता एवं प्रस्तावना:

• इसका सार भारतीय संविधान की प्रस्तावना में मिलता है।

• प्रस्तावना संवैधानिक मूल्यों एवं आदर्शों को स्पष्ट करती है।

• भारत के संविधान के संदर्भ में संवैधानिक नैतिकता के प्रमुख तत्व हैं- प्रस्तावना, कानून का शासन, समानता का अधिकार, राष्ट्र की एकता और अखंडता, सामाजिक न्याय, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।

• यह संविधान के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 12 से 35) अनुभाग में भी शामिल है, जो समाज के प्रत्येक सदस्य के स्वतंत्र अस्तित्व के लिए कुछ आवश्यक अधिकारों की गारंटी देता है।

क्या भारत के संविधान में “संवैधानिक नैतिकता” शब्द का उल्लेख है?

• भारतीय संविधान में यह शब्द स्पष्ट रूप से उल्लेखित नहीं है, नैतिकता की अवधारणा अनुच्छेद 19 (2), अनुच्छेद 19 (4), अनुच्छेद 25 (1) और अनुच्छेद 26 जैसे कुछ अनुच्छेदों में दिखाई देती है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों से संबंधित हैं।

• सुप्रीम कोर्ट ने कानूनों की संवैधानिकता की व्याख्या और मूल्यांकन करने के लिए इस अवधारणा पर विश्वास किया है।

संवैधानिक नैतिकता के स्रोत:

ऐसे चार स्रोत हो सकते हैं जिनसे संवैधानिक नैतिकता के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।

• पहला स्रोत संविधान ही है। यदि हम अनुच्छेद 12 से 35 (मौलिक अधिकार), अनुच्छेद 36 से 51 (राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत), प्रस्तावना और मौलिक कर्तव्यों को ध्यान से अध्ययन एवं व्याख्या करें, तो हम संवैधानिक नैतिकता का अंतर्निहित सार प्राप्त कर सकते हैं।

• दूसरा स्रोत संवैधानिक सभा के दौरान हुई बहसें और चर्चाएं हैं। विशेष रूप से डॉ. अंबेडकर द्वारा व्यक्त विचारों ने इस अवधारणा की हमारी आधुनिक समझ को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

• तीसरा स्रोत संविधान के निर्माण से जुड़ी घटनाएं और ऐतिहासिक संदर्भ है। उस दौरान सीखे गए अनुभवों और पाठों ने अवधारणा की हमारी समझ और अभ्यास को प्रभावित किया है।

• चौथा स्रोत विशेष रूप से हाल के दिनों के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय हैं। सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने दमनकारी कानूनों को समाप्त करने और संवैधानिक नैतिकता की भावना को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अपने निर्णयों से उन्होंने लोकतांत्रिक आदर्शों को मजबूत किया है और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की है।

संवैधानिक नैतिकता बनाम सामाजिक नैतिकता:

• नवतेज सिंह जौहर मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि संवैधानिक नैतिकता को सामाजिक नैतिकता पर प्राथमिकता दी ।

• सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता के उस प्रावधान को रद्द कर दिया जो समान लिंग के वयस्कों के बीच सहमति से यौन आचरण को अपराध मानता था।

• यह राज्य के अंगों को समाज के विविध ताने-बाने को संरक्षित करने और लोकप्रिय भावनाओं के आगे न झुकने के लिए प्रोत्साहित करता है।

• संवैधानिक नैतिकता समाज पर एक समान दर्शन (Uniform philosophy) थोपने के सिद्धांत के विरुद्ध हैं।

निष्कर्ष:

संविधान लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है और उसका लक्ष्य न्याय प्राप्त करना है, चाहे वह सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक हो। यह संविधान के सिद्धांतों को कायम रखने और एक न्यायपूर्ण एवं समावेशी समाज सुनिश्चित करने के बारे में है।

विगत वर्ष के प्रश्न

प्र. संवैधानिक नैतिकता ‘संविधान’ में ही निहित है और इसके आवश्यक पहलुओं पर आधारित है। प्रासंगिक न्यायिक निर्णयों की मदद से संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांत की व्याख्या करें। (2021)

 

 

 

 

 

 

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